शिवराज की विकास यात्रा को फ्लाप कराने का इंदौरी खेल उजागर

@ राजेश ज्वेल
इंदौर इंदौर निगम में 300 करोड़ के विकास कार्यों के ढोल बजवाने की बैठक को महापौर सहित पार्षदों ने अपनी व्यक्तिगत भड़ास का माध्यम बनाकर एक तरह से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की विकास यात्रा को फ्लॉप कराने का इंदौरी खेला किया... शहर में अभी खेलो इंडिया चल ही रहा है तो दूसरी तरफ निगम नेताओं के खेल निगमायुक्त की सख्ती के चलते नहीं हो पा रहे हैं , उसकी पीड़ा अफसरों की शिकायत के नाम पर आए दिन सामने आती है... मजे की बात यह है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी G 20 के वैश्विक मंच से लेकर प्रवासी सम्मेलन, ग्लोबल समिट के दौरान इंदौर की स्वच्छता सहित तमाम खूबियों की दिल खोलकर प्रशंसा करते है और गोवर्धन प्लांट को भी वे एक मिसाल बता चुके हैं, इनमें से अधिकांश तारीफ निगम उपलब्धियों से मिलती रही है तो दूसरी तरफ महापौर पुष्यमित्र भार्गव पार्षदों की बैठक में कहते है कि ढाई साल में जनप्रतिनिधियों के कोई काम ही नहीं हुए और अफसरों ने मनमानी की..जो अब नहीं चलेगी... हालांकि महापौर खुद स्वच्छता से लेकर इंदौर में हुए तमाम विकास कार्यों के साफे हर मंच पर बड़ी शान से बंधवा रहे है ...अगर इंदौर में निगम ने कोई काम ही नहीं किया तो फिर स्वच्छता में लगातार 6 बार नम्बर वन कैसे आ गया और विदेशों से आए प्रवासी गदगद होकर तारीफों के पुल बांध कर कैसे लौटे ? प्रवासी सम्मेलन और समिट की सफलता का श्रेय मुख्यमंत्री ने इंदौर निगम सहित पूरी मशीनरी को क्यों दिया ? दूसरी तरफ़ निगम की भाजपा परिषद् ने अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया और जनता में ये संदेश गया कि निगम के माध्यम से 85 वार्डों में कोई विकास कार्य ही नहीं हुए और इसकी शिकायत वे मुख्यमंत्री से करेंगे... जबकि मैदानी हकीकत यह है कि मुख्यमंत्री कई मर्तबा निगमायुक्त की प्रशंसा करते हुए इंदौर के विकास को बेमिसाल बता चुके हैं और ये भी किसी से छुपा नहीं है कि प्रवासी सम्मेलन व समिट कार्यों की अधिकांश बागडोर निगम ने मुस्तैदी से संभाली, जिसकी मीडिया सहित सभी जनप्रतिनिधियों ने तारीफ की... दरअसल महापौर का फ्रस्ट्रेशन यह है कि उन्हें मुख्यमंत्री सहित अन्य पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से ख़ास तवज्जों नहीं मिल रही... यहां तक कि मोदी जी द्वारा प्रवासियों को दिए लंच में भी उनका नाम नहीं था, उल्टे आयोजन की तैयारियों को लेकर उनके द्वारा प्रबुद्धजनों की पहले बुला ली बैठक पर अवश्य मुख्यमंत्री ने नाराजगी जाहिर की थी... चर्चा है कि इन सब कारणों के चलते ही सुनियोजित तरीके से मुख्यमंत्री की विकास यात्रा को इंदौर में फ्लॉप कराने का खेला निगम बैठक के जरिए खेला गया और विकास यात्रा में होने वाले भूमिपूजन, लोकार्पण की तैयारियों की बजाय पार्षदों से अपने निजी हितों की खुन्नस निकलवाई.. हालांकि इसके पीछे असल खेला पीसी का है... और राजनीतिक गुटबाजी तो है ही .. यही कारण है कि एक अधीक्षण यंत्री को एमआईसी सदस्य के साथ संगनमत होने की कीमत चुकानी पड़ी... इस पूरे वाकये का एक और मजेदार पहलू ये है कि निगम बैठक के बाद सांसद, विधायकों और प्रभारी मंत्री सहित दूसरी तमाम बैठकों में इंदौर में हुए विकास कार्यों की उपलब्धियों को ऐतिहासिक बताते हुए उसे जनता के बीच पहुंचाने का निर्णय लिया जा रहा है और महापौर खुद इन बैठकों में निगम के विकास कार्य गिनवा रहे है... बहारहाल इस चक्कर में महापौर की दोहरी भूमिका जरुर खुलकर उजागर हो गई है... मित्र होने के नाते उन्हें सलाह है कि पहले निगम के कामकाज को समझे और नेताओं के दवाब में आना छोड़े ...मित्र चूंकि कानून के भी जानकर है तो अभी तीन दिन पहले ही सुर्खियो में आए 21 साल पुराने मेघदूत उपवन घोटाले को भी देख ले, जिसमें कोर्ट ने 9 आरोपियों को तीन-तीन साल की सजा सुनाई, जिसमें उन्हीं की पार्टी के 3 पूर्व पार्षद और निगम अधिकारी फंसे.. इससे सबक ना लेते हुए निगम के नेता आज अगर मनचाहे प्रस्ताव दबाव डलवाकर मंजूर करवाएंगे तो वर्षों बाद बुढ़ापे में रोएंगे...कुल मिलाकर निगम नेता फिलहाल खुद ही एक्सपोज हो गए और विकास यात्रा को फ्लाप करवाने के खेला का हिस्सा बन अपने नंबर अलग कटवा बैठे, क्योंकि ये सब आरोप तो कांग्रेस की ओर से लगना चाहिए थे !